जीएनआई, वियतनाम: भारत की घातक ब्रह्मोस मिसाइल अब चीन की टेंशन बढ़ाने जा रही है। दरअसल, फिलीपींस के बाद वियतनाम जल्द भी भारत से ब्रह्मोस मिसाइल सिस्टम खरीदना चाहता है। वियतनाम इन दिनों चीन को लेकर सतर्क है। वह केवल रूसी हथियारों पर अपनी निर्भरता नहीं रखना चाहता है। यही वजह है कि वह अब भारत की ब्रह्मोस मिसाइल खरीदने के प्लान पर काम कर रहा है। हालांकि यह बात अलग है कि ब्रह्मोस को भारत और रूस ने एक साथ मिलकर बनाया है।
सौदे होते ही वियतनाम बनेगा दूसरा देश
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सौदे को जल्द ही अंतिम रूप देने की तैयारी है। अगर सौदा परवान चढ़ा तो वियतनाम फिलीपींस के बाद ब्रह्मोस मिसाइल सिस्टम हासिल करने वाला दूसरा देश बन जाएगा। फिलीपींस और भारत के साथ 2022 में समझौता हुआ था। इसके बाद भारत ने पिछले साल फिलीपींस को ब्रह्मोस मिसाइल सिस्टम की पहली खेप भेजी। यह सौदा 375 मिलियन अमेरिकी डॉलर का है।

आवाज से तीन गुना है रफ्तार
ब्रह्मोस एक घातक सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है। इसका निर्माण भारत और रूस के संयुक्त उद्यम ब्रह्मोस एयरोस्पेस करता है। यह मिसाइल मैक 2.8 या ध्वनि की गति से लगभग तीन गुना अधिक रफ्तार से हमला करने में सक्षम है। ब्रह्मोस 900 किमी दूर स्थित अपने निशाने को तबाह करने में सक्षम है। मिसाइल का नाम भारत की ब्रह्मपुत्र और रूस की मोस्कवा नदी के नाम पर रखा गया है।
चीन की आक्रामकता ने बढ़ाई टेंशन
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक 2022 में वियतनाम के हथियार आयात में रूस की हिस्सेदारी 60 प्रतिशत रही है। वियतनाम अब इस निर्भरता को कम करना चाहता है। लंदन स्थित किंग्स कॉलेज में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के लेक्चरार वाल्टर लैडविग ने साउथ चाइन मॉर्निंग पोस्ट से बातचीत में कहा कि क्षेत्र में चीन के आक्रामक व्यवहार ने वियतनाम की चिंताओं को बढ़ाया है। ब्रह्मोस मिसाइल सिस्टम वियतनाम की रक्षा जरूरत के हिसाब से मुफीद है।

रक्षा क्षेत्र में उभर रहा भारत
लैडविग का कहना है कि ब्रह्मोस सौदे को इस क्षेत्र में भारत के उभरते सुरक्षा साझेदार के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग कोई नहीं बात नहीं है। भारत पहले भी सुखोई -30 लड़ाकू विमानों और किलो-क्लास अटैक पनडुब्बियों का प्रशिक्षण वियतनामी सेनाओं को दे चुका है।